कोदो की खेती:- A to Z जानकारी

परिचय:

कोदो की खेती क्या है ?

कोदो की खेती प्राचीन भारतीय अनाज कोदो के उत्पादन की प्रक्रिया है। यह एक लघु-अनाज है जो ज्वार या बाजरा जैसा दिखता है। कोदो की खेती औषधीय दृष्टिकोण से भी लाभकारी है, क्योंकि इसमें भरपूर मात्रा में प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम और अन्य खनिज होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी माने जाते हैं। कोदो की खेती आज के समय में जंगली अनाज के रूप में लोकप्रिय है, विशेषकर स्वास्थ्य-उन्मुख उपभोक्ताओं के बीच।

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कोदो की खेती मुख्यतः उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ वर्षा कम या अनियमित होती है। यह गर्म और शुष्क जलवायु को सहन कर सकती है। कोदो की खेती के लिए मिट्टी हल्की, बलुई और अच्छी जल निकासी वाली होनी चाहिए। भारत के महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में कोदो की खेती आम है।

कोदो की खेती के लिए खेत की तैयारी बहुत जरूरी है। बरसात शुरू होने से पहले खेत की गहरी जुताई और मिट्टी को भुरभुराकरना चाहिए। प्रमाणित और रोग-प्रतिरोधी किस्में (जैसे — जवाहर कोदो 13, जवाहर कोदो 137) चुनें। बीज को कतार या छिड़काव विधि से बोना चाहिए, जिससे पौधों का बेहतर विकास संभव हो और कोदो की खेती से अच्छी उपज मिले।

कोदो की खेती में उत्तरी भारत में बुवाई 15 जून से 15 जुलाई के बीच होती है, जबकि दक्षिण भारत में मानसून की शुरुआत के अनुसार बुवाई की जाती है। पौधों के बीच उचित दूरी बनाए रखें। कोदो की खेती में शुरुआत और फूल निकलने के समय सिंचाई सबसे आवश्यक होती है, हालांकि यह फसल कम पानी में भी व्याप्त हो सकती है।

कोदो की खेती के दौरान मुख्य रोगों में ब्लास्ट, रस्ट, जड़ और तना सड़न शामिल हैं। रोग रोधी किस्में, प्रमाणित बीज और आवश्यकता अनुसार फफूंदनाशक का उपयोग करें। कोदो की खेती को स्टेम बोरर एवं एफिड्स जैसे कीट भी नुकसान पहुँचा सकते हैं, जिनका जैविक या रासायनिक नियंत्रण किया जा सकता है।

कोदो की खेती में शुरुआती 20–30 दिन तक खरपतवार को निकालना जरूरी है, ताकि फसल को स्वस्थ विकास के लिए पर्याप्त पौष्टिकता और स्थान मिल सके। नियमित निराई-गुड़ाई करें।

कोदो की खेती में फसल पकने के तुरंत पहले (जब दाने कठोर हो जाएं) कटाई करनी चाहिए। कटाई के बाद दानों को कूटकर या मशीन से अलग किया जाता है तथा इससे चावल तैयार किया जा सकता है। पोषण के रूप से कोदो चावल अत्यंत मूल्यवान होता है।

कोदो की खेती के उत्पाद की स्थानीय मंडियों, हेल्थ फूड स्टोर्स या खाद्य प्रसंस्करण केंद्रों में अच्छी माँग है। सही तकनीकों से उपज बढ़ाकर किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं, क्योंकि “कोदो की खेती” कम लागत में अच्छा रिटर्न दे सकती है।

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कोदो की खेती से प्राप्त दानों को खासतौर पर उपवास (व्रत) में खाया जाता है। इससे अनेक प्रकार के व्यंजन बनते हैं — खिचड़ी, चीला, इडली आदि। यह स्वास्थ्य के लिए बेहतरीन है, खासकर डायबिटीज व हृदय रोगियों के लिए लाभकारी माना जाता है।

FAQs :-


Q1: कोदो की खेती कहाँ-कहाँ की जा सकती है?
A: कोदो की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि पर और मुख्य रूप से भारत के महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु व उत्तर प्रदेश में की जा सकती है।

Q2: कोदो की बुवाई का सबसे अच्छा समय क्या है?
A: कोदो की खेती के लिए उत्तरी भारत में 15 जून से 15 जुलाई के बीच और दक्षिण भारत में मानसून के अनुसार बुवाई सबसे उपयुक्त है।


Q3: कोदो की फसल को कौन से रोग प्रभावित करते हैं?
A: कोदो की खेती में मुख्यत: ब्लास्ट, रस्ट, जड़ एवं तना सड़न जैसे रोग लग सकते हैं। इनके बचाव के लिए बीज उपचार, रोग रोधी किस्में एवं आवश्यकतानुसार रसायनों का उपयोग करें।

Q4: कोदो के स्वास्थ्य लाभ क्या हैं?
A: कोदो की खेती से प्राप्त अनाज में कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, प्रोटीन और फाइबर अधिक होता है, जो डायबिटीज और हृदय रोग के लिए लाभकारी है।

Q5: कोदो को बाजार में कैसे बेचा जा सकता है?
A: कोदो की खेती के उत्पाद की कटाई के बाद प्रॉसेसिंग करके दाने निकाले जाते हैं, जिन्हें आसपास की मंडियों या हेल्थ फूड बाजारों में बेचा जा सकता है।

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