वैज्ञानिक नाम – Ustilaginoidea virens (Teleomorph: Villosiclava virens)
धान का कंडुआ रोग (False smut) एक फंगल रोग (फफूंद जनित रोग) है, जिसकी वजह Ustilaginoidea virens (Teleomorph: Villosiclava virens) नामक कवक से होती है। यह रोग खासतौर पर दानों को प्रभावित करता है | संक्रमित दानों पर पहले छोटे हरे-पीले ढांचे बनते हैं जो बाद में नारंगी और फिर काला-हरा गोल आकार में बन जाते हैं। हाल के दशकों में यह रोग कई प्रमुख चावल-उत्पादक क्षेत्रों में बढ़कर धान की फसलों को काफी हानि पहुंचाता है और संक्रमित दानों में कुछ प्रकार के मायकोटॉक्सिन भी बन सकते हैं, जो खाद्य और पशु-स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा करते हैं।

धान का कंडुआ रोग की क्रिया-प्रणाली (Mode of attack & disease cycle)
- संक्रमण की शुरुआत आमतौर पर बूटिंग / फ्लॉवरिंग (boot to flowering) के चरण के आसपास होती है | कवक परागण के द्वारा या हवा/बारिश से फैलते संक्रामक कणों द्वारा पैनिकल (पुष्पगुच्छ) पर आता है और अनाज के बनते हिस्से में प्रवेश करता है। पर लक्षण अक्सर अनाज भरने (grain-filling) के चरण में दिखाई देते हैं | यानी बीमारी का असर बाद में खुलकर दिखता है।
- संक्रमित बीज या पैनिकल (पुष्पगुच्छ) पर कवक कई रंग-परिवर्तन वाले बॉल/गॉल बनाता है | प्रारम्भ में हरा से नारंगी/पीला और फिर परिपक्वता पर काला-हरा आकार में गोल रूप ले लेते हैं | ये स्पोर्स खेत में, मशीनों पर और हवाएँ-बारिश के माध्यम से फैलते हैं।
- रोग जीवित (biotrophic) तरीके से पोषण लेता है और कुछ अध्ययन बताते हैं कि यह मायकोटॉक्सिन भी बनाता है | इसलिए केवल उपज की कमी ही नहीं, गुणवत्ता और बाज़ार-स्वीकृति पर भी असर पड़ता है।
पहचान — लक्षण और निरीक्षण कैसे करें (How to identify)
दिखने वाले लक्षण:–
पैनिकल पर कुछ दाने बदलकर गोल-गोल, मृदु-गुठली जैसे पीलापन-नारंगी संरचना बनाते हैं जो बाद में सूख कर हराभूरा-काला हो जाता है। इनको “स्मट बॉल” कहा जाता है। संक्रमित दाने हल्के से बद्ध नज़र आते हैं और दाने की गांठ कमजोर रहती है।
- उत्पाद व अनाज पर असर: ग्रेड/वजन घटता है, अंकुरण दर घट सकती है और बाज़ार में मिलावट होने पर कीमत प्रभावित होती है। कुछ मामलों में संक्रमित चावल मायकोटॉक्सिन के कारण मानव व पशु-सेहत के लिए जोखिम बन सकता है।
- समय पर निरीक्षण: धान की गोभ अवस्था और फूल आने के बाद से लेकर दाना भरने तक खेतों की निगरानी करें |लाभकारी है कि पैनिकल व ऊपरी दानों का निरीक्षण बार-बार करें। लक्षण अक्सर एक-दो हफ़्तों के अंदर स्पष्ट दिखने लगते हैं।
धान का कंडुआ रोग की अनुकूल परिस्थितियाँ (Favourable conditions)
- आर्द्र मौसम और उच्च सापेक्ष आर्द्रता: लगातार बारिश, कुहरी या उच्च आर्द्रता फॉल्स स्मट के लिये अनुकूल होती है।
- मध्यम तापमान रेंज: कई अध्ययनों में रोग के विकास के लिए मध्यम तापमान और नम वातावरण अनुकूल दिखे हैं।
- अत्यधिक नाइट्रोजन उर्वरक: अधिक यूरिया उर्वरक के उपयोग और पौधों का घना रोपण माइक्रो-क्लाइमेट बनाकर रोग को बढ़ावा देते हैं | कई फील्ड अध्ययनों ने उच्च नत्रजन स्तर पर बीमारी की आवृत्ति अधिक पाई है।
- दूसरी फसलों की निकटता, संक्रमित अवशेष व देर से रोपण भी संक्रमण का जोखिम बढ़ा सकते हैं।
नियंत्रण के प्रमुख उपाय (Major control measures) IPM दृष्टिकोण
फॉल्स स्मट के लिए सर्वश्रेष्ठ रणनीति IPM (Integrated Pest Management) है – सांस्कृतिक + जैविक + रासायनिक उपायों का संयोजन। रासायनिक मात्राओं का उपयोग तभी करें जब आर्थिक हानि स्तर के पार हो, और प्रमाणित निर्देशों के अनुसार ही।
1. सांस्कृतिक नियंत्रण (Cultural practices)
- सही उर्वरक प्रबंधन: नाइट्रोजन का अनावश्यक उच्च प्रयोग टालें, नाइट्रोजन उर्वरक को दो-तीन बार (split) करके समय पर दें ताकि बूटिंग/फ्लॉवरिंग के समय अत्यधिक न हो। फसलों का संतुलित पोषण रोग-रोधक क्षमता बनाये रखता है।
- समय पर बुवाई/री-रोटेशन: देर से बुवाई करने पर बीमारी का जोखिम बढ़ सकता है | फसल-रोटेशन अपनाने से कवक के होस्ट उपलब्धता में कमी आती है।
- क्षतिग्रस्त अवशेष का निपटान: कटाई के बाद बचा हुआ संक्रमित अनाज/अवशेष हटाएँ या दफन/जलाकर नष्ट करें | इससे खेत में स्पोर-लोड घटता है।
- समुचित पौधे दूरी और वेंटिलेशन: घना रोपण और क्लोज़ कैंटो (closed canopy) न बनें | हवा-आवागमन बेहतर हो तो रोग कम फेलता है |
2. जैविक व बहु-प्राकृतिक उपाय (Biological / eco-friendly)
- प्राकृतिक शत्रु व माइक्रोबियल एजेंट: कुछ बैक्टीरिया/फंगस (उदा. Trichoderma spp.) तथा जैविक नियंत्रक प्रयोगशाला व क्षेत्रीय सलाह पर प्रभाव दिखा सकते हैं | ये फफूंद के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।
- बेहतर किस्मों का चयन: क्षेत्रीय रूप से प्रतिरोधी या तुलनात्मक रूप से कम संवेदनशील किस्मों का उपयोग सबसे आर्थिक व टिकाऊ तरीका है।
3. रासायनिक नियंत्रण (Chemical control)
- फफूंदनाशी और समय: कई शोधों में propiconazole, tebuconazole, azoxystrobin-containing मिश्रण, carbendazim+mancozeb जैसे एज़ेंट्स ने प्रभाव दिखाया है—खासकर 50% panicle emergence (panicle-emergence / early heading) चरण पर किया गया स्प्रे उपयोगी रहा है।
- स्टेज-विशिष्ट छिड़काव: संक्रमण के संवेदनशील चरण (booting/early flowering) पर उपयुक्त फंगिसाइड का एक या दो स्प्रे किया जाता है |
- सावधानी: अनावश्यक स्प्रे या बार-बार एक ही वर्ग के रसायन के उपयोग से कवक में प्रतिरोध बन सकता है; रोटेशन और मिश्रण की रणनीति अपनाएँ।
खेत सुरक्षा — किसान के लिए व्यावहारिक सुझाव (Field protection checklist)
- नियमित निरीक्षण: बूटिंग से दाना-भरने तक प्रति सप्ताह पैनिकल की जाँच करें। लक्षण दिखते ही कृषि विशेषज्ञ / KVK से सलाह लें।
- नाइट्रोजन का संभलकर उपयोग: अधिक N से बचें | आवश्यकता अनुसार विभाजित खुराक दें।
- समय पर कटाई: यदि कुछ हिस्सों में संक्रमण अधिक है तो समय से कटाई की योजना बनायें ताकि फैलाव कम हो।
- उपकरण व बीज की सफाई: साझा मशीनरी और बीज स्टोरेज की सफाई रखें; संक्रमित दानों को बीज के रूप में उपयोग न करें।
- स्थानीय सलाहकार से कंसल्ट: किस्म-चयन, फंगिसाइड विकल्प और खुराक के लिए अपने क्षेत्रीय कृषि विस्तार (KVK/State Agri Univ.) से निर्देश लें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न: क्या फॉल्स स्मट अनाज को पूरी तरह नष्ट कर देता है ?
उत्तर: हर दाना संक्रमित नहीं होता पर जिस अनुपात में पैनिकल प्रभावित हों, उतनी ही पैदावार-क्षति और गुणवत्ता गिरती है; मायकोटॉक्सिन का जोखिम भी हो सकता है।
प्रश्न: क्या किसी घरेलू उपाय से यह पूरी तरह नियंत्रित हो सकता है?
उत्तर: सांस्कृतिक उपाय और जैविक तरीके सहायक हैं, पर गंभीर संक्रमण में प्रमाणित फंगिसाइड और क्षेत्रीय प्रबंधन जरूरी होता है |
प्रश्न: धान का कंडुआ रोग की कौन-सा चरण सबसे संवेदनशील है ?
उत्तर: बूटिंग से फ्लॉवरिंग और शीघ्र दाना-भरने के चरण ही संवेदनशील माने जाते हैं; इसलिए इन चरणों पर निगरानी और आवश्यक होने पर फंगिसाइड का छिड़काव प्रभावी रहता है।
निष्कर्ष — संक्षेप में संदेश (Takeaway for farmers)
फॉल्स स्मट (Ustilaginoidea/Villosiclava virens) अब कई क्षेत्रों में उभरता रोग बन चुका है | यह केवल उपज नहीं घटाता बल्कि अनाज की गुणवत्ता और स्वास्थ्य-जोखिम भी बढ़ा सकता है। समय पर निगरानी, संतुलित पोषण (विशेषकर नाइट्रोजन का विवेकपूर्ण उपयोग), खेत-सफाई, प्रतिरोधी/कम संवेदनशील किस्मों का चयन और जरुरत के अनुसार स्टेज-विशिष्ट फंगिसाइड का मिश्रित उपयोग (IPM) मिलकर सबसे अच्छा परिणाम देते हैं। अपने नज़दीकी कृषि अधिकारी (KVK) से क्षेत्रीय सलाह लेना न भूलें।
नोट:- किसान भाइयों यदि यह जानकारी आपको अच्छी लगी तो खेती किसानी से जुडी हर जानकारी के लिए नीचे दिए गए Whatsapp ओर Telegram चैनल को फॉलो जरुर करें | जिससे आपको इसी प्रकार की जानकारी समय समय पर मिलती रहे |
धन्यवाद