धान में लगने वाले प्रमुख रोगों की पहचान और उनका प्रबंधन

धान के प्रमुख रोग और उनकी पहचान

धान भारत की सबसे महत्वपूर्ण फसल है, लेकिन कई तरह के रोग और कीट इसकी पैदावार को बुरी तरह प्रभावित कर देते हैं। अगर समय रहते इनकी पहचान कर ली जाए और सही उपचार किया जाए, तो किसान भाई बेहतर उपज प्राप्त कर सकते हैं। आज हम धान में लगने वाले प्रमुख रोगों की पहचान, उनके लक्षणों और आसान नियंत्रण के उपायों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

धान में लगने वाले प्रमुख रोगों की पहचान और उनका प्रबंधन

1. धान का झोका रोग ( Rice Blast)

रोग कारकPyricularia oryzae (Sexual stage: Magnaporthe grisea)

यह रोग फसल के सभी स्टेज पर प्रभाव डालता है, यह रोग धान के प्रमुख रोगों में से एक है | इस रोग का प्रभाव लगभग पौधे के सभी वायवीय भागों पर दिखाई देता है, मुख्य रूप से पत्तियों,बालियों की गले पर और तनों की गांठो पर दिखाई देता है | इस रोग से लगभग 70-80% तक की हानि हो सकती है |

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लक्षण –
  • Leaf blast of rice – इसमें पौधे की पत्तियों पर Spindle shape  के धब्बे दिखाई देते हैं |जो की बीच में grey रंग और पत्तियों के किनारे पर भूरे रंग धब्बे दिखाई देते हैं | जिससे बाद में पत्ती जली हुई दिखाई देती है |
  • Neck Blast of rice – इसके लक्षण बालियों के गले पर दिखाई देते हैं , प्रभावित स्थान पर भूरे रंग के घाव बन जाते हैं और बालियाँ टूट कर गिर जाती हैं |
  • Node Blast Of rice – इसके लक्षण पौधे के तानो के गांठो पर दिखाई देता है | प्रभावित गांठो पर काले रंग के घाव बन जाते हैं , जो की बाद में वही से टूट जाते हैं |

अनुकूल परिस्थियाँ –

लंबे समय तक या लगातार वर्षा, कम मिट्टी की नमी, ठंडा तापमान और लगभग 93-99% की उच्च सापेक्ष आर्द्रता वाले क्षेत्र इस रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।

रोग प्रबंधन –

  • रोगरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए |
  •  बीज का चयन रोगरहित फसल से करना चाहिए।
  •  बीज को सदैव ट्राइकोडरमा से उपचारित करके ही बुवाई करना चाहिए।
  •  फसल की कटाई के बाद खेत में रोगी पौध अवशेषों एवं ठूठों इत्यादि को एकत्र करके नष्ट कर देना चाहिए |
  • Hexaconazole 5 % EC, Tebuconazole 50% + Trifloxystrobin 25% WG का उपयोग करना चाहिए |

2. धान का झुलसा या जीवाणु झुलसा रोग (B.L.B)-

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रोग कारक Xanthomonas oryzae

लक्षण –
  • पत्तियों पर राख के रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो धीरे-धीरे मिलकर बड़े धब्बे बन जाते हैं और पत्ती के सिरे से लेकर आधार तक सफेद धारियाँ बन जाती हैं।
  • पत्तियां पीली पद कर मुरझा जाती हैं | इसे आमतौर पर ‘पौधे मुरझाना’ या ‘क्रेसेक’ कहा जाता है।
अनुकूल परिस्थियाँ –

यह रोग मुख्यतः सिंचित और वर्षा आधारित, निचले इलाकों में पाया जाता है। 25-34°C तापमान, 70% से अधिक सापेक्ष आर्द्रता, उच्च नाइट्रोजन उर्वरक, तेज़ हवाएँ और लगातार वर्षा रोग के संक्रमण के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ हैं।

रोग प्रबंधन – 

  • शुद्ध एवं स्वस्थ बीजों का ही प्रयोग करें।
  • बीजों को बुआई करने से पहले  2.5 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन और 25 ग्राम कापर आक्सी क्लोराइड के घोल में 12 घंटे तक डुबोयें।
  •  इस बीमारी को लगने की अवस्था में नत्रजन का प्रयोग कम कर दें।
  • जिस खेत में बीमारी लगी हो उस खेत का पानी किसी दूसरे खेत में न जाने दें। साथ ही उस खेत में सिंचाई न करें।
  • बीमारी को और अधिक फैलने से रोकने के लिए खेत में समुचित जल निकास की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • Copper oxychloride 50%wp का उपयोग करना चाहिए | 

3. धान का भूरा धब्बा (Brown Spot of Rice)-

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रोग कारकHelminthosporium oryzae

Affecting Stage- नर्सरी से दुधिया अवस्था तक |

लक्षण –
  • पीले रंग के अंडाकार या बेलनाकार गहरे भूरे धब्बे बन जाते हैं |
  • फूलों के संक्रमण से दानों का अधूरा भराव और दाने की गुणवत्ता में कमी हो सकती है |

अनुकूल परिस्थियाँ

86-100% से अधिक सापेक्ष आर्द्रता, 16-36°C का तापमान, तथा संक्रमित बीज, खरपतवार और संक्रमित ठूंठ रोग संक्रमण के लिए अनुकूल कुछ स्थितियाँ हैं।

रोग प्रबंधन –

  • समय पर फसलों की निगरानी रखना चाहिए 
  • Propiconazol 25% EC, Hexaconazole 5% SC का प्रयोग करना चाहिए |

4. धान का आभासी कंडवा (False Smut)-

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रोग कारक – Ustilaginoidea virens

Affecting Stage – फूल आने की अवस्था से पकने तक

लक्षण – 
  • धान की बालियों में नारंगी या पीले रंग के उभर आ जाते हैं जो की बाद में हरे या काले रंग में बदल जाते हैं |
  • प्रभावित बालियों में दाने नहीं बनते हैं |

अनुकूल परिस्थियाँ –

25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान, 90% से अधिक सापेक्ष आर्द्रता, उच्च नाइट्रोजन उर्वरक, भारी वर्षा और हवाएं फाल्स स्मट संक्रमण के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं।

रोग प्रबंधन –
  • सदैव बीज उपचार करके ही बुवाई करनी चाहिए |
  • खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए।
  • खेत की तैयारी के वक्त खेत की सफाई कर उसकी गहरी जुताई करके तेज़ धूप लगने के लिए खुला छोड़ देंना चाहिए।  
  • Tebuconazole दवा का प्रयोग करना चाहिए |

5. टूंगरु डिजीज (Rice tungro)-

रोग कारक – राइस टून्ग्रू वायरस 

यह रोग वायरस के द्वारा फैलता है , जो की Leafhopper कीट के द्वारा फैलता है |

लक्षण –

पौधे की बढ़वार रुक जाती है , पत्तियों का रंग पीला नारंगी हो जाता है |

अनुकूल परिस्थियाँ –

खेतों में पड़े पुराने फसल के अवशेष और खरपतवारो में वायरस के स्त्रोत की उपस्थिति से इस रोग के फैलने की सम्भावना ज्यादा होती है |

रोग प्रबंधन – 

यह एक वायरस जनित रोग है, इसका प्रबंधन के लिए प्रभावित पौधे को खेत से उखाड़ दूर फेक देना चाहिए |

Leafhopper की उपस्थिति में कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए | जिससे की वो इस रोग को फैला न सके |

6. ग्रासी स्टंट वायरस (Grassy Stunt Virus)

जिन स्थानों पर चावल की खेती लगातार और वर्ष भर की जाती है, वहां रोग फैलाने के लिए अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।रोग कारक –

इस रोग को फ़ैलाने वाला कारक Brown Plant Hopper कीट है |

यह वायरस के द्वारा फैलता है | इस रोग का प्रकोप पौधे के कल्ले निकलते समय अधिक होता है |

लक्षण –

पौधे का बढ़वार रुक जाता है | विकास नहीं हो पता है |

अनुकूल परिस्थितियां –

जिन स्थानों पर चावल की खेती लगातार और वर्ष भर की जाती है, वहां रोग फैलाने के लिए अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।

FAQ

1. धान में सबसे सामान्य रोग कौन-कौन से होते हैं?
धान में प्रमुख रोग इस प्रकार हैं:

  • ब्लास्ट रोग (Blast)
  • शीथ ब्लाइट (Sheath Blight)
  • ब्राउन स्पॉट (Brown Spot)
  • फॉल्स स्मट (False Smut)
  • बेक्टेरियल लीफ ब्लाइट (Bacterial Leaf Blight)

2. ब्लास्ट रोग के लक्षण क्या हैं और इसका नियंत्रण कैसे करें?

  • लक्षण: पत्तियों, तनों और बालियों पर भूरे-धूसर रंग के अंडाकार या हीरे के आकार के धब्बे बनते हैं।
  • नियंत्रण: बीज को कार्बेन्डाजिम या ट्राइसीक्लाजोल से उपचारित करें और रोग के प्रारंभ में ट्राइसीक्लाजोल 0.06% का छिड़काव करें।

3. शीथ ब्लाइट रोग से धान को कैसे बचाएं?

  • लक्षण: पत्तियों के पास के तनों पर गहरे भूरे धब्बे, जो धीरे-धीरे पूरे पौधे में फैल जाते हैं।
  • नियंत्रण: उचित दूरी पर रोपाई करें, नमी का संतुलन रखें और मानकोजेब या कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करें।

4. ब्राउन स्पॉट रोग का कारण और उपचार क्या है?

  • कारण: मुख्य रूप से बीज जनित फफूंद।
  • नियंत्रण: स्वस्थ बीज का चयन करें, बीजोपचार करें और रोग दिखने पर जिंक की कमी दूर करें व प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करें।

5. फॉल्स स्मट रोग क्या है और इसे कैसे रोका जाए?

  • लक्षण: बालियों के कुछ दानों में हरे-पीले रंग की गेंदनुमा संरचना बनती है।
  • नियंत्रण: बीजोपचार करें, नाइट्रोजन की अधिकता से बचें और प्रोपिकोनाजोल का फूल आने से पहले छिड़काव करें।

6. बेक्टेरियल लीफ ब्लाइट रोग से धान को कैसे बचाएं?

  • लक्षण: पत्तियों के किनारों से पीला और सूखना शुरू होता है, जो आगे चलकर पूरी पत्ती को सुखा देता है।
  • नियंत्रण: रोग सहनशील किस्मों का प्रयोग करें, संक्रमित खेत में गहरी जुताई करें और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें।

7. क्या धान के रोगों से बचाव के लिए जैविक उपाय भी हैं?
हाँ, ट्राइकोडर्मा, पseudomonas fluorescens जैसे जैविक एजेंट का प्रयोग बीजोपचार और मृदा उपचार में किया जा सकता है।

8. रोग नियंत्रण के लिए छिड़काव कब करना चाहिए?
रोग के शुरुआती लक्षण दिखते ही छिड़काव करें, ताकि रोग का प्रसार रोका जा सके।

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