फूलगोभी की खेती : बरसात के बाद लगाए फूलगोभी होगा बंपर मुनाफा

भारत में सब्जियों में फूलगोभी की खेती का एक विशेष स्थान है | यह ब्रोकली और बंदगोभी की प्रजाति से संबंधित सब्जी है | फूलगोभी न केवल स्वादिष्ट होती है, बल्कि पोषण से भरपूर भी है | इसमें प्रोटीन, विटामिन C, फाइबर और खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं | किसानों के लिए फूलगोभी की खेती एक लाभकारी विकल्प है, क्योंकि इसकी मांग पूरे साल बनी रहती है और बाजार में इसे अच्छी कीमत मिलती है|

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खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी

  • फूलगोभी की खेती समशीतोष्ण जलवायु में सबसे अच्छी होती है।
  • इसके लिए 15°C से 25°C तापमान आदर्श माना जाता है।
  • मिट्टी हल्की दोमट, बलुई दोमट और अच्छी जल निकासी वाली होनी चाहिए।
  • मिट्टी का pH मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए।

नर्सरी और बीज दर

  • प्रति हेक्टेयर खेती के लिए लगभग 500 से 600 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • नर्सरी तैयार करने के लिए क्यारी बनाकर उसमें गोबर की सड़ी हुई खाद और हल्की मिट्टी मिलाई जाती है।
  • बीजों को हल्की गहराई में बोकर ऊपर से भूसे या पुआल से ढक दें।
  • बीज बोने के 25 से 30 दिन बाद पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है।

फूलगोभी की खेती कब और कैसे करें

  • शुरुआती किस्में (जुलाई से अगस्त)
  • मध्यवर्ती किस्में (सितंबर से अक्टूबर)
  • देर वाली किस्में (नवंबर से दिसंबर)
  • खेत की 2–3 बार गहरी जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लें |
  • रोपाई करते समय पौध से पौध की दूरी 45 सेंमी × 60 सेंमी रखें |

खाद और उर्वरक प्रबंधन

फूलगोभी की अच्छी पैदावार के लिए संतुलित खाद और उर्वरक की आवश्यकता होती है।

  • गोबर की सड़ी खाद : 20–25 टन/हेक्टेयर
  • नाइट्रोजन (N) : 120 किग्रा
  • फास्फोरस (P2O5) : 60 किग्रा
  • पोटाश (K2O) : 60 किग्रा
    नाइट्रोजन को दो भागों में बांटकर प्रयोग करें – आधी रोपाई के समय और आधी 30 दिन बाद |

सिंचाई और खरपतवार प्रबंधन

  • फूलगोभी की खेती में पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए |
  • इसके बाद हर 10–12 दिन पर सिंचाई करें |
  • खेत में नमी हमेशा संतुलित रखनी चाहिए क्योंकि अधिक या कम नमी से फूलों की गुणवत्ता प्रभावित होती है |
  • खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना जरूरी है |

रोग और कीट नियंत्रण

प्रमुख रोग

  1. ब्लैक रॉट रोग – पत्तों पर पीले धब्बे दिखाई देते हैं।
    नियंत्रण : बीजों को ट्राइकोडर्मा या बाविस्टिन से उपचारित करें।
  2. डाउऩी मिल्ड्यू – पत्तों के नीचे सफेद फफूंद जैसी परत।
    नियंत्रण : मेटालेक्सिल या मैनकोजेब का छिड़काव करें।

प्रमुख कीट

  1. पत्ता खाने वाले कीट – पत्तों को छेदकर नुकसान पहुंचाते हैं।
    नियंत्रण : नीम का तेल (5 मि.ली./लीटर पानी) का छिड़काव करें।
  2. तना मक्खी – पौधे की जड़ और तना नुकसान करते हैं।
    नियंत्रण : क्लोरोपायरीफॉस का छिड़काव करें।

फूलगोभी के फिजिकल डिसऑर्डर (भौतिक विकार)

1. बटनिंग (Buttoning)

कारण-

  • पौधे में नाइट्रोजन की कमी तथा तापमान कम होने की वजह से होता है |

लक्षण –

  • छोटे-छोटे बटन जैसे फूल बन जाते हैं |
  • मुख्य फूल का विकास नहीं हो पाता |

नियंत्रण –

  • उपयुक्त समय पर रोपाई करें |
  • पर्याप्त नाइट्रोजन उर्वरक दें |
  • सही किस्म का चुनाव करें |

2. राइसिनेस (Riciness)

कारण-

  • तापमान में अचानक वृद्धि |
  • अधिक नाइट्रोजन का प्रयोग |
  • देर से पकने वाली किस्म का जल्दी रोपण |

लक्षण –

  • फूल चावल के दानों की तरह बिखर जाता है | पूरे फूल पर छोटे उभार आ जाते हैं |
  • फूल की क्वालिटी घट जाती है।

नियंत्रण –

  • उचित समय पर बोवाई करें |
  • संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें |
  • रोपाई के समय का ध्यान रखें |

3. लीफी कर्ड (Leafy Curd)

कारण –

  • नाइट्रोजन की अधिकता |
  • असमान तापमान |
  • देर से रोपाई |

लक्षण –

  • फूल के बीच से पत्तियाँ निकल आती हैं |
  • फूल बाजार योग्य (बेंचने) नहीं रहता |

नियंत्रण –

  • नाइट्रोजन उर्वरक की संतुलित मात्रा प्रयोग करें।
  • सही समय पर रोपाई करें।

4. होलो स्टेम (Hollow Stem)

कारण –

  • बोरॉन की कमी |
  • नाइट्रोजन का अत्यधिक उपयोग से |
  • बहुत तेजी से पौधा बढ़ना |

लक्षण –

  • फूलगोभी की डंठल अंदर से खोखली हो जाती है |
  • पौधा कमजोर हो जाता है |

नियंत्रण –

  • बोरॉन युक्त उर्वरक (बोरैक्स) का प्रयोग करें |
  • संतुलित पोषण दें |

5. ब्राउनिंग (Browning / Boron Deficiency)

कारण –

  • बोरॉन की कमी |
  • असमान सिंचाई |

लक्षण –

  • फूल के अंदर भूरे या काले धब्बे बन जाते हैं।
  • फूल की क्वालिटी खराब हो जाती है।

नियंत्रण –

  • प्रति हेक्टेयर 10–15 किग्रा बोरैक्स डालें |
  • नियमित सिंचाई करें |

6. ब्लाइंडनेस (Blindness)

कारण –

  • पौध की नर्सरी अवस्था में चोट |
  • बहुत कम या ज्यादा तापमान |

लक्षण –

  • पौधे में फूल नहीं आता |
  • केवल पत्तियाँ ही बढ़ती हैं |

नियंत्रण –

  • स्वस्थ पौध का चयन करें |
  • नर्सरी में पौध को कीट और रोग से बचाएँ |

फूलगोभी की कटाई और उपज

  • फूल बनने के बाद उसे पूरी तरह विकसित लेकिन सख्त अवस्था में तोड़ना चाहिए |
  • कटाई का सही समय सुबह या शाम का होता है |
  • औसत उपज 200–250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल सकती है |

फूलगोभी की खेती से होने वाले फायदे

  • कम समय में तैयार होने वाली फसल |
  • बाजार में पूरे साल अच्छी मांग |
  • किसानों को रोजगार और अच्छा मुनाफा |
  • पोषण से भरपूर और उच्च मूल्य वाली सब्जी |

फूलगोभी की खेती – उपयोगी टिप्स

  • हमेशा रोग प्रतिरोधक और उन्नत किस्म का चयन करें |
  • समय पर सिंचाई और निराई-गुड़ाई करें |
  • फूल बनने के समय मिट्टी चढ़ा दें ताकि फूल धूप से खराब न हों |
  • जैविक खाद और कीटनाशक का अधिक उपयोग करें |

FAQ

Q1. फूलगोभी की खेती का सही समय क्या है ?

उत्तर : जुलाई से दिसंबर तक किस्मों के अनुसार खेती की जा सकती है |

Q2. फूलगोभी की नर्सरी कब डालनी चाहिए ?
उत्तर : जून से सितंबर के बीच नर्सरी तैयार करनी चाहिए |

Q3. फूलगोभी की उपज कितनी मिलती है ?
उत्तर : औसतन 200–250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर |

Q4. फूलगोभी में कौन-कौन से रोग लगते हैं ?
उत्तर : ब्लैक रॉट, डाउऩी मिल्ड्यू और पत्ता खाने वाले कीट आम समस्या हैं |

Q5. फूलगोभी की खेती से कितना मुनाफा हो सकता है ?
उत्तर : यदि वैज्ञानिक तरीके से खेती करें तो प्रति हेक्टेयर 60–80 हजार रुपये तक का लाभ संभव है |

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