कपास की खेती: जानिए कपास की खेती की सम्पूर्ण जानकारी 1 ही जगह पर

कपास की खेती भारत की सबसे प्रमुख नकदी फसलों में से एक है, जिसे ‘सफेद सोना’ भी कहा जाता है। कपास न केवल कपड़ा उद्योग की रीढ़ है, बल्कि यह किसानों के लिए एक स्थिर आय का साधन भी बन चुका है। भारत विश्व में चीन के बाद सबसे अधिक कपास उत्पादन करने वाला देश है। जिसे भारत के कई राज्यों में उगाया जाता है | जिनमें महाराष्ट्र, पंजाब,तमिलनाडु और मध्यप्रदेश प्रमुख राज्य हैं |


जलवायु और मिट्टी :-

कपास की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। फसल के लिए 20°C से 35°C तक का तापमान अच्छा मन जाता है। 60–100 सेमी वार्षिक वर्षा पर्याप्त होती है। काली मिट्टी (रेगुर) सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिसकी जल धारण क्षमता अच्छी होती है। मिट्टी का pH स्तर 6 से 8 के बीच होना चाहिए।


कपास की प्रमुख किस्में :-

  • Bt कपास (कीटरोधी) ( Genetic Modified Cotton )
  • हाइब्रिड किस्में: RCH-134, JKCH-1947
  • देसी किस्में: संकर नरमा

क्षेत्र और जलवायु के अनुसार किस्मों का चयन जरूरी होता है। सही किस्म से उत्पादन और गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है।


बुवाई का समय और विधियाँ :-

उत्तर भारत में मई-जून, मध्य भारत में जून-जुलाई, और दक्षिण भारत में जुलाई-अगस्त सबसे उपयुक्त समय होता है। बीज बोनी के पूर्व बीज को फफूंदनाशक से बीजोपचारित करें और कतार में बुवाई करें। बीज दर 2–3 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है।


खाद और उर्वरक प्रबंधन :-

  • जैविक खाद: खेत की जुताई के समय गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट खाद को पुरे खेत में छिड़क कर अच्छे से मिला दें |
  • रासायनिक उर्वरक:
    • नाइट्रोजन (N): 100–120 किग्रा/हेक्टेयर
    • फॉस्फोरस (P): 60 किग्रा/हेक्टेयर
    • पोटाश (K): 40 किग्रा/हेक्टेयर
  • सूक्ष्म पोषक तत्व: जिंक, बोरॉन

मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरक की मात्रा उपयोग करें।


सिंचाई प्रबंधन :-

बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें। इसके बाद फूल आने और फली बनने के समय सिंचाई आवश्यक होती है। ड्रिप सिंचाई से पानी की बचत होती है और पौधे को लगातार नमी मिलती रहती है।


खरपतवार नियंत्रण :-

बुवाई के 15-20 दिन बाद पहली निंदाई करें। आवश्यकता अनुसार दूसरी और तीसरी गुड़ाई भी करें। खरपतवार नाशकों जैसे पेंडिमिथालिन का सीमित उपयोग करें।


रोग और कीट नियंत्रण :-

प्रमुख कीट: गुलाबी सुंडी, कपास का लाल कीड़ा, तम्बाकू सुंडी, कपास का पत्ती लपेटक, कपास का हरा तेला

कपास की गुलाबी सुंडी (Cotton pink boll worm)-
यह कीट जाड़ोंमें बिनौले के अन्दर निष्क्रिय अवस्था में रहता है तथा इन्ही बीजों के साथ खेतों में पहुँच जाता है तथा प्रौढ़ बनकर पौधे पर अंडे देता है | इन अण्डों से छोटी छोटी सुंडी निकलती है जिनसे प्रभावित फूल एवं कलियाँ ठीक ढंग से खिल नहीं पते हैं |अगस्त से नवम्बर तक कीट का प्रकोप अधिक रहता है |

नियंत्रण :- गर्मियों में गहरी जुताई करें | फसल ट्रेप के रूप में कपास के खेत के चारों ओर टमाटर या भिन्डी के पौधे लगाने चाहिए | जून-अक्टूबर तक प्रति एकर 4-5 फेरोमोन ट्रेप लगाना चाहिए |


प्रमुख रोग: कपास का जड़ गलन रोग , झुलसा, अंगमारी

कपास का जड़ गलन रोग :-
यह रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाई नमक कवक के द्वारा होता है | यह रोग देसी कपास में अधिक तथा अमेरिकन कपास में कम होता है | इस रोग का प्रकोप छोटे पौधे में अधिक होता है,इस रोग में फफूंद जड़ को चारो ओर घे लेती है जिससे जड़ के ऊपर की छाल गल कर नम और चिपचिपी हो जाती है | पौधे की जड़ों से दुर्गन्ध आती है तथा खींचने पर आसानी से उखाड़ जाता है |

इस रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम – 50 wp/हे. 250 ग्रा.का छिडकाव करें |
उपाय: जैविक कीटनाशक, फसल चक्र, रोग प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग और समय-समय पर निरीक्षण जरूरी है।


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फसल कटाई और उपज :-

जब बॉल पूरी तरह से फट जाए तब फसल की तुड़ाई करें। कपास को साफ और सूखी जगह पर स्टोर करें। एक हेक्टेयर से औसतन 15–20 क्विंटल तक उपज मिल सकती है।


भंडारण और विपणन :-

कटाई के बाद कपास को छायादार, सूखे स्थान पर रखें। बिक्री के लिए स्थानीय मंडियों, कॉटन मिलों, और CCI केंद्रों से संपर्क करें।


कपास की खेती के फायदे :-

  • नकदी फसल – सीधा लाभ, कपास की खेती में नगद पैसा मिल जाता है जिससे किसानो को पैसों के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता |
  • कपड़ा उद्योग में उच्च मांग- कपडा उद्योग के लिए कपास कच्चा माल होता है जिसमें इसकी मांग बहुत अधिक होती है |
  • बीज, खल और तेल जैसे उप-उत्पाद- कपास के बीज से तेल निकला जाता है, और इसके खल को खाद के रूप में भी उप्तोग किया जाता है |
  • ग्रामीण रोजगार और आर्थिक मजबूती- कपास से बाती , रजाई गद्दे आदि बनाकर लोगों को रोजगार मिलता है |

सरकारी योजनाएं

  • CCI (Cotton Corporation of India) खरीद समर्थन
  • PMFBY (प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना)
  • बीज पर सब्सिडी
  • कृषि प्रशिक्षण केंद्रों द्वारा तकनीकी सहयोग

FAQs –

Q1: कपास की खेती में सबसे उपयुक्त किस्म कौन-सी है?
उत्तर: आपके क्षेत्र की जलवायु पर निर्भर करता है, लेकिन Bt और हाइब्रिड किस्में अधिक उपज देती हैं।

Q2: एक एकड़ में कितनी उपज होती है?
उत्तर: देखरेख और किस्म के अनुसार 6–8 क्विंटल/एकड़ उपज संभव है।

Q3: क्या कपास की खेती जैविक रूप से की जा सकती है?
उत्तर: हाँ, लेकिन इसके लिए विशेष प्रबंधन और निरीक्षण जरूरी होता है।

Q4: कपास की खेती में सबसे अधिक खर्च किस पर होता है?
उत्तर: बीज, उर्वरक और कीटनाशकों पर।

Q5: क्या सरकार से अनुदान मिलता है?
उत्तर: हाँ, CCI और कृषि विभाग के माध्यम से किसान अनुदान और बीमा का लाभ ले सकते हैं।


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