धान के प्रमुख रोग

धान का वैज्ञानिक नाम: ओराइजा सैटाइवा

धान भारत की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसलों में से एक है जो कुल फसल क्षेत्र के 1/4 भाग को कवर करती है। चावल विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या का प्रमुख भोजन है। चावल के विश्व भर में उत्पादन की दृष्टि से में के बाद भारत का दूसरा स्थान है। वर्ष 2024 -25 में चावल का कुल उत्पादन 149 मिलियन टन रहा है। चावल की खेती का वर्ष 2024 -25 में कुल क्षेत्रफल 47.8 मिलियन हेक्टेयर है। देशभर में धान की खेती ज्यादातर खरीफ के मौसम में की जाती है। यह उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ता है।

प्रमुख रोग :-

आज हम आपको धान में लगने वाले प्रमुख रोगों के बारे में बताएँगे जिसकी मदत से आप अपने धन की फसल में आने वाले रोगों की पहचान आसानी से कर पाएंगे और समय रहते उसको नियंत्रण भी कर पाएंगे |

1.धान का ब्लास्ट रोग (Rice Blast)-

रोगजनक: पाइरिक्युलिया ओराइजा (यौन अवस्था: मैग्नापोर्थे ग्रिसिया)

प्रभावित अवस्थाएँ: अंकुरण से लेकर कल्ले एवं बालियां निकलने तक की सभी फसल अवस्थाएं।

धान का ब्लास्ट रोग, सबसे घातक रोगों में से एक है। यह रोग धान के पौधों के सभी भागों को प्रभावित करता है, इनमें मुख्य रूप से पत्तियां, गर्दन और गांठों को। इससे अनाज में 70-80 प्रतिशत तक नुकसान होने की आशंका रहती है।

लक्षण:

  • धान की पत्तियों का फटना(Leaf Blast)– केंद्र में स्लेटी रंग और किनारों पर भूरे रंग के तंतु के आकार के धब्बे, जो बाद में ‘जले हुए’ दिखाई देते है l 
  • धान का नेक ब्लास्ट (Neck Blast)– पौधे की गर्दन पर भूरे रंग के घाव व पुष्पगुच्छ टूट कर गिर जाते है l 
  • धान की गांठों का फटना (Nodal Blast)– पौधे की प्रभावित गांठों पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते है जो बाद में टूट जाते है l 

अनुकूल परिस्थितियाँ:

इस बीमारी के लिए लंबे समय तक या लगातार वर्षा वाले क्षेत्र, मिट्टी की नमी कम, ठंडा तापमान और लगभग 93-99 प्रतिशत की उच्च सापेक्षिक आर्द्रता अति संवेदनशील होती है।

2.धान की पत्तियों का जीवाणु झुलसा (bacterial leaf blight BLB)

रोगजनक: जैन्थोमोनास ओरेज (Xanthomonas oryzae)

प्रभावित अवस्थाएँ: कल्ले निकलने की अवस्था से शीर्ष अवस्था तक

लक्षण:

  • इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों पर पानी से भरे धब्बे दिखाई देते है जो धीरे-धीरे आपस में मिलकर बड़े धब्बों का रूप ले लेते है साथ ही पत्ती के सिरे से आधार तक सफेद धारियाँ बन जाती है।
  • पत्तियों का पीला पड़ना एवं मुरझाना l 
  • इस रोग को आमतौर पर ‘सीडलिंग विल्ट’ या ‘क्रेसेक’ के नाम से जाना जाता है l 

अनुकूल परिस्थितियाँ:

यह रोग ज्यादातर सिंचित और वर्षा आधारित निचले इलाकों में होता है। इसके लिए तापमान 25-34°C, सापेक्ष आर्द्रता 70% से अधिक, उच्च नाइट्रोजन उर्वरक, तेज हवाएं और निरंतर वर्षा रोग संक्रमण के लिए अनुकूल परिस्थितियां है।

3.धान का शीथ रॉट(Sheath Blight)

रोगजनक: रिज़ोक्टोनिया सोलेनी (Rhizoctonia solani)

प्रभावित अवस्थाएँ: बूट लीफ अवस्था

लक्षण:

  • पौधे की फ्लैग लीफ पर अनियमित धूसर-भूरे रंग के पानी से भरे हुए घाव बन जाते है।
  • प्रभावित भाग के अंदर सफेद चूर्ण कवक की वृद्धि दिखाई देती है l

अनुकूल परिस्थितियाँ:

यह रोग शुष्क मौसम की तुलना में गीले मौसम में सबसे अधिक फैलता है। उच्च नाइट्रोजन उर्वरक, चोट एवं घाव से ग्रसित पौधे, उच्च सापेक्ष आर्द्रता, 20-28 डिग्री सेल्सियस का तापमान एवं निकट रोपण घनत्व आदि रोग के लिए अनुकूल परिस्थितियां है।

4.धान का भूरा धब्बा रोग:(Brown spot of rice)

रोग जनक: हेल्मिन्थोस्पोरियम ओरेजा (Helminthosporium oryzae)

प्रभावित अवस्थाएँ: सीडलिंग से दूधिया अवस्था तक l

लक्षण:

  • पीले घेरे के साथ अंडाकार या बेलनाकार गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देना।
  • फ्लोरेट्स के संक्रमण से दाना पूरा नहीं भरता है और दानों की गुणवत्ता भी कम हो सकती है l 

अनुकूल परिस्थितियाँ:

सापेक्ष आर्द्रता 86-100% से अधिक, तापमान 16-36 डिग्री सेल्सियस एवं संक्रमित बीज, खरपतवार और संक्रमित ठूंठ रोग संक्रमण के लिए अनुकूल परिस्थितियां है।

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