सरसों की खेती का समय: अनुकूल परिस्थितियाँ, खेत की तैयारी, बीज का चुनाव और उपयुक्त किस्में

सरसों की खेती का समय

सरसों भारतीय रबी प्रणाली की मुख्य तिलहन फसल है। बुवाई-समय क्षेत्र, वर्षा और स्थानीय जलवायु पर निर्भर करता है, पर सामान्य निर्देश नीचे दिए जा रहे हैं-

  • उत्तर भारत (पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश): 15 अक्टूबर से 15 नवंबर यह ठंडी के शुरू होने से ठीक पहले उपयुक्त होती है।
  • मध्य भारत (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़): अक्टूबर के अंत से नवम्बर तक।
  • पूर्वी भारत (बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल): अक्टूबर–नवम्बर (स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार)।
  • पश्चिमी व शुष्क क्षेत्र (राजस्थान, गुजरात): अक्टूबर–नवम्बर; सिंचाई उपलब्धता के आधार पर समायोजन करें।
  • दक्षिणी सीमित क्षेत्र: कुछ स्थानों पर नवम्बर-दिसम्बर में भी बुवाई हो सकती है, पर यहाँ सरसों की पैदावार सीमित रहती है।

क्यों यह समय जरुरी है ?
बहुत जल्दी बुवाई होने पर ठंड का नुकसान हो सकता है, तथा बहुत देर से बुवाई पर गर्मी के चरण में फूल/दाना प्रभावित होते हैं।

सफल सरसों फसल के लिए मुख्य रूप से ये परिस्थितियाँ आवश्यक हैं:

  • तापमान: अंकुरण के लिए 8–10°C की रातें व दिन में 20–25°C उत्तम। फूल-भरने व दाना भरण में मध्यम तापमान व पर्याप्त नमी चाहिए।
  • मिट्टी: अच्छी जलनिकासी वाली दोमट (loamy) मिट्टी सर्वश्रेष्ठ; pH 6–7.5 अनुकूल। भारी चिकन मिट्टी में जलजमाव से रोग बढ़ते हैं।
  • जलवायु: हल्की ठंड और शुष्क मौसम शुरुआती चरण के लिए अच्छा है | पर फूल और दाने भरने के समय आवश्यक नमी दें।
  • पोषण व पोषक: सल्फर (S) की उपलब्धता सरसों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है | तेल की मात्रा और गुणवत्ता पर असर पड़ता है। संतुलित NPK दें, पर अत्यधिक N से रोग व लॉजिंग(पौधों का गिरना) बढ़ सकते हैं।
  1. मिट्टी परीक्षण: बुवाई से पहले मिट्टी-टेस्ट कराएँ — NPK व सूक्ष्म तत्त्वों की स्थिति जान लें।
  2. जुताई/प्लॉइंग: 1–2 बार हल्की जुताई कर मिट्टी को ढीला और समतल करें | जल निकास की व्यवस्था बनाएं |
  3. अवशेष : पिछली फसल के रोगजनक/अवशेष का निपटान करें | अवशेष को गड्ढे में दफ़न करें या जला दें |
  4. बेड-तैयारी और समतलीकरण: बीज समान रूप से बिछाने के लिए खेत समतल होना आवश्यक है।
  5. गोबर खाद/कम्पोस्ट: आवश्यकता अनुसार 5–10 टन/हेक्टेयर दे सकते हैं, मिट्टी संरचना सुधरती है। आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं |
  • प्रमाणित (Certified) बीज ही उपयोग करें: उच्च अंकुरण (≥85%), शुद्धता और रोग-रहित बीज लें।
  • बीज उपचार (Seed treatment): बीज को फफूंदनाशक (उदा. कारबेंडाजिम) और कीटनाशक के साथ उपचारित करें। जैविक विकल्प के रूप में Trichoderma या neem-seed treatment भी उपयोगी है।
  • बीज की ताजगी और भंडारण: बीज को सूखा व ठंडा स्थान पर रखें, नमी और अधिक ताप से अंकुरण घटता है।
  • बीज दर: पंक्ति बोवाई में 4–6 किग्रा/हेक्टेयर (लघु किस्मों में कम), छिटकवा विधि में थोड़ा अधिक रखें। स्थानीय आवश्यकतानुसार समायोजित करें।

किस्म चुनते समय इन बिंदुओं पर ध्यान दें:

  • फसल अवधि (Maturity): जल्दी पकने वाली (early maturing) किस्म या मध्यम अवधि वाली | आपके कटाई-शेड्यूल व बाद की फसल के अनुरूप चुनें।
  • तेल प्रतिशत: विशेषकर तेल पर जोर हो तो उच्च तैलीय किस्में का चुनाव करें ।
  • रोग-प्रतिरोधी गुण: White rust, Alternaria blight, aphid tolerance जैसी प्रतिरोधक क्षमताएँ देखें।
  • हाइब्रिड बनाम ओपीवी: हाइब्रिड अक्सर उच्च उपज देते हैं पर बीज महंगा होता है| ओपन-pollinated varieties (OPV) बार-बार बीज लेने पर सस्ता विकल्प।
  • स्थानीय अनुशंसाएँ: अपने जिले/राज्य के KVK या कृषि विश्वविद्यालय से क्षेत्र-विशिष्ट अनुशंसित किस्मों की सूची लें ये स्थानीय जलवायु व रोग-प्रोफाइल के अनुसार परखी हुई होती हैं।
  • पंक्ति में बोवाई (Line sowing): 30–45 सेमी पंक्ति की दूरी (row spacing) और पौधे से पौधे की दूरी 5–10 सेमी रोपण दूरी।
  • बीज-गहराई: 1–2 सेमी ज्यादा गहरा बोने पर अंकुरण धीमा होगा।
  • ड्रिल/डिब्बा विधि: ड्रिल से बीज समान रूप से बिछते हैं और बाद में निराई/निकालना आसान होता है।

संतुलित उर्वरक: सामान्य दिशा-निर्देश के तौर पर नत्रजन मध्यम रखें (अत्यधिक N से रोग व लॉजिंग बढ़ने का खतरा रहता है )।

  • सल्फर (S): सरसों के लिए सल्फर बहुत आवश्यक है | सल्फर की कमी तेल प्रतिशत घटाती है। मिट्टी परीक्षण के आधार पर Gypsum/SSP या सल्फर-युक्त उर्वरक दें।
  • सूक्ष्मतत्त्व: बोरोन व जस्ता(जिंक) की कमी पर फल-फूल/बीज की गुणवत्ता प्रभावित होती है | परीक्षण के अनुसार सप्लीमेंट दें।
  • प्रारम्भिक नमी: अंकुरण और शुरुआती वृद्धि के लिए खेत में हल्की नमी रखें।
  • पुष्पावस्था : दाना भरने से पहले आवश्यक नमी दें | पर जलजमाव से बचें।
  • निराई/खरपतवार: 2–3 बार निराई करने से खरपतवार नियंत्रण में मदद मिलती है | पंक्ति में बोने पर निराई गुड़ाई का काम में आसानी होती है |

निगरानी: खेत में नियमित निरीक्षण कर कीटों (aphid, mustard sawfly, caterpillars) व रोगों की शुरुआत पकड़ें।

  • सांस्कृतिक उपाय: समय पर बुवाई, संतुलित पोषण, अवशेष का निपटान, और सफाई से खतरा कम होता है।
  • जैविक नियंत्रण: नेम (neem) या जैविक कीटनाशक, ट्राइकोडर्मा इत्यादि का प्रयोग।
  • रासायनिक नियंत्रण: आवश्यकता अनुसार, स्थानीय सलाह व निर्देशानुसार प्रमाणित दवाओं का प्रयोग करें | एक ही वर्ग की दवाओं का नियमित प्रयोग न करें (रोटेशन रखें)।
  • कटाई का समय: जब पौधे पीले होने लगें और दाने पककर कठोर हों , आम तौर पर 100–120 दिन किस्म के अनुसार। बहुत देर से कटाई से दाने गिर सकते हैं।
  • सूखाना: कटाई के तुरंत बाद दानों को अच्छी तरह सूखा कर 8–10% नमी पर स्टोर करें।
  • भंडारण: कीट तथा नमी से बचाने के लिए साफ व सूखा गोदाम रखें | कीट नियंत्रण के लिए उचित उपाय अपनाएँ |

FAQs

1. सरसों बुवाई का सबसे अच्छा समय कौन-सा है ?
उत्तर: क्षेत्र के अनुसार भिन्न है, पर आमतौर पर उत्तर भारत में 15 अक्टूबर–15 नवम्बर की विंडो सर्वोत्कृष्ट मानी जाती है; मध्य व पूर्वी भागों में भी अक्टूबर-नवम्बर सही होते हैं। स्थानीय KVK की सलाह अनुसार अंतिम तिथि तय करें।

2. सरसों के लिए किस प्रकार की मिट्टी उपयुक्त है ?
उत्तर: अच्छी जलनिकासी वाली दोमट (loamy) मिट्टी सबसे अच्छी है | pH 6–7.5 अनुकूल माना जाता है। भारी चिकनी जमीन में जलजमाव से रोग बढ़ सकते हैं।

3. बीज की किस अवस्था/गुणवत्ता पर ध्यान रखें ?
उत्तर: प्रमाणित (certified) बीज लें | अंकुरण ≥85%, शुद्ध और रोग-मुक्त। बीज को सूखा और ठंडा स्थान पर रखें।

4. कितना बीज दर चाहिए (Seed rate) ?
उत्तर: रेखा बोवाई में लगभग 4–6 kg/हेक्टेयर सामान्य दर है; ब्रॉडकास्ट में थोड़ी अधिक दर रखें। क्षेत्रीय प्रथाओं के अनुसार समायोजन करें |

5. बीज का उपचार (seed treatment) क्यों जरूरी है ?
उत्तर: बीज उपचार से फंगस व कीट का सुरक्षात्मक कवच बनता है, अंकुरण और प्राथमिक वृद्धि बेहतर रहती है। जैविक विकल्प (Trichoderma, neem) भी उपयोगी हैं |

6. सरसों की उर्वरक आवश्यकता कैसी रखें ?
उत्तर: मिट्टी-टेस्ट के आधार पर संतुलित NPK दें; सल्फर (S) विशेषकर महत्वपूर्ण है — तेल प्रतिशत पर असर पड़ता है। N को विभाजित डोज़ में दें ताकि लॉजिंग और रोग न बढ़ें |

7. कितना पानी दें, सिंचाई का सही समय क्या है ?
उत्तर: अंकुरण व शुरुआती वृद्धि में हल्की नमी रखें; फूल और दाना भरने के समय संतुलित सिंचाई दें। जलजमाव से बचें — यह जड़ रोग बढ़ाता है |

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