परिचय — भावान्तर योजना क्या है ?
भावान्तर भुगतान योजना (Bhavantar Bhugtan Yojana) वह सरकारी पहल है, जिसमें किसान को जो कीमत मंडी या बाजार में मिलती है और उस फसल का सरकारी निर्धारित मूल्य (MSP या मॉडल प्राइस) के बीच का अंतर सरकार द्वारा भरा जाता है। सरल शब्दों में – जब किसान को बाजार में MSP से कम दाम मिलता है, तो सरकार उस कमी का भुगतान सीधे किसान के बैंक खाते में कर देती है। इस तरह किसान को “कमी भरपाई” (price deficiency payment) मिलती है और उसे खराब भाव मिलने से सुरक्षा मिलती है।

योजना की शुरूआत और कहाँ लागू हुई ?
भावान्तर योजना की शुरुआत सबसे पहले मध्यप्रदेश में 16 अक्टूबर 2017 के में हुई थी, जहाँ इसे खरीफ फसलों (विशेषकर तेलहन और दालें) के लिए लागू किया गया। बाद में इस तरह के मॉडल को अन्य राज्यों ने भी अपनाया या समान विचार के कार्यक्रम चलाये | कुछ राज्यों ने अलग-अलग नामों से और अलग नियमों के साथ लागू किया। कई राज्यों (जैसे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा आदि) ने समय-समय पर इस तरह की योजनाओं को अपनाया या विस्तारित किया है।
योजना कैसे काम करती है – स्टेप बाय स्टेप (सरल प्रक्रिया)
- किस्में व फसलें चुनना: राज्य सरकार तय करती है, कि किन-किन फसलों को योजना के दायरे में लाया जाएगा (आम तौर पर वे फसलें जिन पर सरकारी खरीद कम होती है)।
- किसान का पंजीकरण: लाभ पाने के लिए किसान को योजना में पंजीकरण करना होता है | कई राज्यों में डिजिटल पोर्टल या मंडी रजिस्ट्रेशन के जरिये।
- बिक्री का प्रमाण (रसीद/बिल): किसान जब अपनी उपज बेचेगा, उसे बिक्री रसीद/बिल लेना होगा, ताकि असली बिक्री भाव की पुष्टि हो सके।
- मंडी-भाव vs मॉडल/MSP: सरकार उस समय की मंडी-भाव (या मॉडल भाव) और MSP की तुलना करती है | यदि मंडी-भाव कम है तो अंतर निकाला जाता है।
- भुगतान (भवंतर): अंतर (MSP − मार्केट भाव) की राशि निर्धारित नियमों के अनुसार किसान के बैंक खाते में भेज दी जाती है। प्रक्रिया राज्य के नियमों पर निर्भर करती है।
योजना का उद्देश्य और किसानों को क्या लाभ मिलता है ?
- कीमत की सुरक्षा : भाव में भारी गिरावट आने पर किसान को आर्थिक सुरक्षा मिलती है | वह अनावश्यक नुकसान से बचेगा।
- बेचना जल्दी-जल्दी न करना (distress sale कम होना): यदि किसान जानता है कि कमी भरपाई मिलेगी, तो दबाव में सस्ते भाव पर बेचने की जल्दी कम होगी।
- स्थिर आय का भरोसा: खासकर तेलहन और दलहन जैसी फसलों में, जिनमें बाजार भाव अस्थिर रह सकते हैं, किसान को भरोसा मिलता है।
भावान्तर भुगतान योजना की चुनौतियाँ –
- बजटीय भार (Fiscal burden): सरकार को लगातार अंतर भरने के लिए बड़ा धनराशि चाहिए | यह राज्यों के वित्त पर भारी असर डाल सकता है। इसलिए दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता प्रश्न बनता है।
- बाज़ार विकृति (Market distortion): कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि लगातार अंतर भरने से मंडी संकेत (market signals) कमजोर हो सकते हैं और फसलों के उत्पादन में बेठीक सांकेतिक बदलाव आ सकते हैं।
- लाभार्थी चयन और क्रियान्वयन चुनौतियाँ: सही किसानों तक भुगतान कैसे पहुंचे, फर्जी रजिस्ट्रेशन और सत्यापन की जटिलताएँ | ये प्रशासनिक चुनौतियाँ हैं। कई जगहों पर समय पर भुगतान नहीं हो पाने की शिकायतें भी रहीं।
योजना में सामर्थ्य बनाये रखने के लिए क्या सावधानियाँ जरूरी हैं
- लक्षित कवरेज: केवल उन्हीं फसलों या उन्हीं परिस्थितियों में योजना लागू करें जहाँ आवश्यकता व लाभ स्पष्ट हो।
- पारदर्शिता: पंजीकरण, बिक्री रसीद, और भुगतान का पूरा डिजिटल रिकॉर्ड रखना चाहिए ताकि फसलों के हिसाब से सही भुगतान हो सके।
- फंडिंग मॉडल: राज्य सरकारों को यह योजना दीर्घकालिक आधार पर चलाने से पहले वित्तीय मॉडल और बजट पठनीयता का आकलन करना चाहिए।
- किसान-सशक्तिकरण: एफपीओ, सहकारी संस्थाओं और मंडियों के माध्यम से किसानों को संगठित करके सही लाभार्थी पहचान व वितरण सुनिश्चित किया जा सकता है।
क्या भावान्तर ही एकमात्र उपाय होना चाहिए ?
भावान्तर मददगार है पर वह अकेला समाधान नहीं है। किसानों की आय स्थायी रूप से बढ़ाने के लिए अन्य कदम भी जरूरी हैं | जैसे MSP पर प्रभावी खरीद, बेहतर भंडारण/कोल्ड स्टोरेज, प्रोसेसिंग यूनिट्स, बाजार तक सीधी पहुँच (direct marketing), एफपीओ को मज़बूत करना और माइक्रो-इन्फ्रास्ट्रक्चर। भावान्तर एक अस्थायी या पूरक सुरक्षा जाल की तरह काम कर सकता है, पर समग्र सुधारों के साथ जोड़कर ही स्थायी लाभ देगा।
निष्कर्ष –
भावान्तर योजना किसानों को MSP और बाजार भाव के बीच गिरावट से बचाने का एक प्रभावी साधन है। इसकी सफलता का श्रेय सही लक्षित क्रियान्वयन, तेज़ और पारदर्शी भुगतान प्रणाली और वित्तीय स्थिरता पर निर्भर करता है। जहाँ यह सही तरह से लागू हुआ, किसानों को राहत मिली, पर नीति निर्माताओं को बाजार विकृति व बजटीय असर पर भी सोचकर ही इसे लागू करना चाहिए। किसानों के लिए बेहतर होगा कि वे अपने स्थानीय कृषि विभाग, KVK या मंडी अधिकारियों से योजना के नियम, पंजीकरण प्रक्रिया और दस्तावेज़ों की जानकारी अवश्य ले लें ताकि वे भावान्तर का सही लाभ उठा सकें।