धान लगाने की S.R.I पद्धति / मेडागास्कर विधि / श्री पद्धति धान

S.R.I. विधि धान लगाने की एक उन्नत तकनीक है , जिसमें कम दिनों लगभग 12-14 दिन की पौध को निश्चित दूरी पर एक चिन्ह लगाकर उस स्थान पर पौध को रोपा जाता है |

खरपतवारों को वीडर की सहायता से जमीन में दबाकर कार्बनिक खाद में परिवर्तित कर दिया जाता है, और रासायनिक उर्वरकों का कम से कम उपयोग किया जाता है | जबकि कार्बनिक खादों का तथा जैविक नियंत्रकों का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाता है |

S.R.I. (System of Rice Intensification) के अवयव

  • कम बीज की आवश्यकता |
  •  कम उम्र की पौध का अधिक दूरी पर रोपण |
  • वीडर द्वारा खरपतवार का नियंत्रण |
  • कार्बनिक खादों का अधिक से अधिक प्रयोग |
  • कम पानी की आवश्यकता |
  • रोग एवं कीट का जैविक प्रबंधन |

भूमि का चुनाव -

सामान्य तौर पर दोमट मिट्टी जिसका पी.एच.5.5 से 7.5 के बीच में हो ,भूमि का चयन ज्यादा बेहतर होता है | खेत की तैयारी करते समय खेत को अच्छी तरह से समतल कर देना चाहिए | जिससे की खेत में पानी समान रूप से फैल जाए | जल भराव वाली भूमि का चयन नहीं करना चाहिए, क्योंकि अधिक पानी के कारण पौधों की जड़ों का विकास ठीक ढंग से नहीं हो पता है, और साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि खेत से जल का निकास भी उचित तरीके से हो सके |

 

बीज दर -

इस पद्धति में धान की खेती हेतु अच्छे उत्पादन एवं उच्च गुणवत्ता वाले किस्म के बीज का चुनाव करना चाहिए | प्रति हेक्टेयर 6 से 8 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है | एक एकड़ के लिए 3 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है |

 

कार्बनिक खादों का प्रयोग -

एस..आर. आई. पद्धति में कार्बनिक खादों को अधिक से अधिक बढ़ावा दिया जाता है | पौधे की रोपाई के लगभग 2 महीने पहले मुख्य खेत में सनई या ढेंचा को उगा देना चाहिए और बुवाई के 40 से 50 दिन बाद मिट्टी पलट हल की सहायता से उसे मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए | इसके बाद पानी भरकर सडा देना चाहिए | इससे भूमि में कार्बन, नाइट्रोजन तथा लाभदायक सूक्ष्म जीवों की मात्रा बढ़ जाती है, जो कि धान की फसल के लिए बहुत ही लाभदायक होता है | खेत में लगभग 15 टन अच्छी सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए | यदि वर्मी कंपोस्ट या नाडेप की खाद उपलब्ध हो तो उसे भी पर्याप्त मात्रा में डालना चाहिए |

नर्सरी की तैयारी -

धान की नर्सरी तैयार करने के लिए खेत में ऊंचे स्थान का चयन करना चाहिए | जहां पानी न भरता हो | पौधे को ऊंची क्मेंयारियों में उगाना चाहिए | इसके लिए 1.25 मी चौड़ी तथा 6 इंच ऊंची और आवश्यकता अनुसार लंबी क्यारियां बना लेनी चाहिए | बीज को लगभग 12 घंटे तक भिगोने के बाद उसे टाट या बोरी में लपेटकर अंकुरण के लिए रख देना चाहिए, और समय-समय पर आवश्यकता अनुसार पानी का छिड़काव करना चाहिए | अंकुरित बीजों को ट्राइकोडर्मा पाउडर 2 ग्राम प्रति आधा किलोग्राम बीज से उपचारित करके 20 से 25 मिनट तक छाया में सूखने के बाद बुवाई के लिए प्रयोग करना चाहिए | बीज को बोने के बाद इसको धान के पुआल या हरा मैत से ढक दें , इससे की चिड़िया आदि नुकसान न पहुंचा सके और इसे प्रतिदिन शाम सुबह आवश्यकता अनुसार पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए |

 

खेत की तैयारी एवं रोपाई-

खेत की तैयारी परंपरागत विधि से ही करें परंतु यह ध्यान रखना है कि खेत का समतलीकरण अच्छी तरह से हो अन्यथा पानी समान रूप से नहीं फैलेगा | रोपाई के समय खेत में पानी भरा नहीं रहना चाहिए , क्योंकि मार्कर से जो चिन्ह लगाएंगे उसको देखने में असुविधा होगी | मार्कर की सहायता से 25* 25 सेंटीमीटर की दूरी पर निशान लगा देना चाहिए | और बने हुए वर्ग के कोनों पर 12 दिन पुरानी पौध को रोपना चाहिए | पौधे को नर्सरी से इस प्रकार निकालना चाहिए कि पौधे के साथ उसकी सारी जड़े  साथ में निकल आए और इसके बाद पौधे को शीघ्र खेत में रोप देना चाहिए | रोपाई के दूसरे दिन खेत में पानी दे देना चाहिए |

                                                                      

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