मूंग की खेती की सम्पूर्ण जानकारी :-

मूंग की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

 मध्य प्रदेश राज्य में मूंग खरीफ मौसम की कम समय में पकने वाली एक प्रमुख फसल है प्रदेश में इसे लगभग 1 लाख  हेक्टेयर में बोया जाता है जिसकी औसतन उपज 350 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है मूंग की फसल को खरीफ ,रबी, एवं जायद तीनों मौसम में उगाया जाता है उन्नत जातियों एवं उत्पादन की नई तकनीक सत्य पद्धतियों को अपनाकर पैदावार को 10 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाया जा सकता है |

जलवायु :-

मूंग की खेती विभिन्न प्रकार की जलवायु में की जाती है | अधिक वर्षा मूंग की फसल के लिए बहुत ही हानिकारक होती है | लगभग 60 से 70 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इस फसल को अधिक तापक्रम तथा फलिया पकते  समय शुष्क मौसम एवं उच्च ताप लाभदायक होता है |

 

मिटटी का चुनाव एव तैयारी :-

मूंग की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि की जा सकती है | बलुई दोमट भूमि से दोमट भूमि में जल निकास उचित होता है | मूंग की खेती के लिए जिस भूमि का पीएच मान 7 से 8 हो वह उपयुक्त होती है | भूमि में पर्याप्त मात्रा में सल्फर होना लाभप्रद होता है | दो या तीन बार कल्टीवेटर की सहायता से जुताई  करके खेत को  बुवाई के लिए जून के अंतिम पखवाड़ा तक तैयार कर लेना चाहिए | खेत में जुताई से पहले खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद 5 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलना चाहिए | 

बीज की मात्र एवं उपचार :-

खरीफ के मौसम में मूंग का बीज 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लगता है | जबकि जायद में बीज की मात्रा 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक होती है | बीज बुवाई से पहले थायराम 3  ग्राम या 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम फफूंद नाशक दवाई से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करके ही बीज की बुवाई करना चाहिए | जिससे भूमि जनित बीमारियों से बचाव होता है | 5 ग्राम राइजोबियम कल्चर प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें और छाया में सुखाकर फिर बुवाई करना चाहिए | राइजोबियम कल्चर के उपचार से पौधे की जड़ों पर राइजोबियम की गांठ ज्यादा बनती है | जिससे नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया ज्यादा होती है | पीएसबी कल्चर का उपयोग ज्यादा लाभप्रद होता है |

 

बोने का समय एवं विधि :-

मूंग की फसल से अधिक उत्पादन के लिए बुवाई का समय एक मुख्य कारक है | खरीफ में जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के दूसरे सप्ताह तक पर्याप्त वर्षा होने पर ही बुवाई करें | जायद में फरवरी के दूसरे – तीसरे सप्ताह से मार्च के दूसरे सप्ताह तक बुवाई करना चाहिए | बुवाई सीड ड्रिल की सहायता से कतारो में करना चाहिए | कतारों के बीच 30 सेंटीमीटर व पौधों से पौधों के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए  और बुवाई 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर करना चाहिए | जायद के मौसम में कतारो की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखना चाहिए, जिससे कि खरीफ से ज्यादा पौधों की संख्या प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो सके |

 

खाद एवं उर्वरक की मात्रा
:-

मूंग के लिए 20 किलोग्राम नाइट्रोजन 50 किलोग्राम फास्फोरस बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए | सल्फर की कमी वाले क्षेत्र में सल्फर युक्त खाद 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना चाहिए | मिट्टी में पोटाश की कमी होने पर 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए |

 

सिंचाई एवं जल निकास विधि
:-

आमतौर पर खरीफ के सीजन में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, परंतु फूल अवस्था में सूखे की स्थिति में हल्की सिंचाई करने से उपज में काफी बढ़ोतरी हो जाती है | अधिक वर्षा की स्थिति में खेत में पानी की निकासी करना बहुत जरूरी होता है | जायद में मूंग की फसल में खरीफ की तुलना में पानी की ज्यादा आवश्यकता होती है | 10 से 15 दिन के अंतराल पर 4 से 5 बार सिंचाई करना चाहिए तथा गर्मी अधिक होने पर सिंचाई का अंतराल 8 से 10 दिन का रखना चाहिए , ताकि फसल की बढ़ोतरी अच्छे ढंग से हो सके |

 

निंदाई गुड़ाई / खरपतवार नियंत्रण :-

मूंग के खेत में प्रथम निंदाई बुवाई के 20 से 25 दिन के अंतर पर व दूसरी 30 से 40 दिन बाद करना चाहिए | खरपतवार नियंत्रण हेतु निंदानाशक आवश्यकता पड़ने पर प्रयोग करना चाहिए | जैसे कि फ्लूक्लोरेलिन 45 इसी या पेंडामिथिलिन का प्रयोग करना चाहिए |

 

पौध संरक्षण :-

सफेद मक्खी

सफेद मक्खी के शरीर और दोनों पंखों पर सफेद से पीले रंग का मोमी स्राव रहता है। वे अक्सर पत्तियों की निचली सतह पर दिखती है। ये गरम और सूखी परिस्थितियों में पनपती है। पत्तियों की निचली सतह पर अंडे दिए जाते हैं। नवजात पीले से सफेद रंग के, सपाट, अंडाकार और हल्के-पीले होते हैं । इस कीट की अपरिपक्व व वयस्क अवस्थाएं पत्तियों की निचली सतह से रस चूसती है। यह कीट पत्तों पर हनीड्यू उत्सर्जित करते हैं। इस हनीड्यू पर काली फफूंद उगने लगती है जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण क्रिया बाधित होती है,पौधे अपना भोजन नहीं बना पते हैं । जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है। सफेद मक्खी पीले मोज़ेक वायरस को भी फैलाती है।

प्रबंधन

(trapcrop )मक्का या ज्वार की फसल मूंग के चारों ओर लगाने से इस कीट काआक्रमण  कम होता है। इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL (3 मि.ली. प्रति कि. ग्रा. बीज) से बीजोपचार तथा फसल पर 0.2 मिली  प्रति लीटर पानी की दर से छिडक़ाव करें।

चेपा (माहू) 

माहू छोटे, नरम शरीर के कीड़े है। प्रजातियों के आधार पर उनके शरीर का रंग पीला, भूरा या काला होता है। इस कीट के शिशु और प्रौढ़ पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूल-फलियों पर समूह में एकत्रित होकर रस चूसकर उसे कमजोर बना देते हैं। कोमल पत्तिया इनके प्रभाव से सिकुड़ी हुई दिखाई देती है। गंभीर संक्रमण से पत्तियां और टहनियाँ मुड़ सकती हैं और पीली पड़ सकती है। साथ ही पौधे के विकास को नुकसान हो सकता है।

प्रबंधन

नीम तेल (3000 पीपीएम) तथा नीम बीज सार (5 प्रतिशत) से छिडक़ाव करने से चेपा का प्रबंधन किया जा सकता है।

फली बग (Pod borer )

फली बग की वयस्क एवं अपरिपक्व दोनों ही अवस्थाएं हानिकारक होती है। प्रौढ़ बग कुछ हरे भूरे रंग के होते है। वयस्क मादा फलियों पर एक समूह में 5-25 अण्डे देती है। यह कीट समूह में पत्तियों, कलियों तथा फलियों से रस चूसकर पौधे को कमजोर करते है। प्रकोपित फलियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं और फलियों के अंदर के दाने सिकुड़े तथा छोटे आकार के हो जाते हैं।

टोबैको कैटरपिलर 

इस कीट की वयस्क पतंगा मटमैले भूरे रंग की होती है, जिसके ऊपरी पंखों पर सफेद रंग की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं होती है। निचले पंख सफेद होते है। वयस्क मादा अण्डे 200-250  के समूहों में पत्ती की निचली सतह पर देती है। एक वयस्क मादा लगभग 1200-2000 अण्डे देती है। इस कीट की छोटी इलियाँ मटमैले हरे रंग की होती है और प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों पर समूह में रहकर हरे भाग को खुरच-खुरच कर खाती है। परिणामस्वरूप ग्रसित पत्तियाँ जालीदार हो जाती है। पूर्ण विकसित इलियाँ हरे, भूरे या कत्थई रंग की होती है। शरीर के प्रत्येक खण्ड के दोनों और काले तिकोने धब्बे इसकी विशेष पहचान है। बड़ी इलियाँ पूरे खेत में फैल जाती है एवं पत्तियों को खाकर फसल को नुकसान  पहुंचाती  है। 

प्रबंधन

इस कीट के नवजात इलियों को एकत्र करके उन्हे नष्ट कर देते है। प्रबंधन के लिए क्लोरानट्रानिलिप्रोल 18.5 SC का 100 मिली. प्रति हेक्टर की दर से छिडक़ाव कर सकते  हैं।

मूंग के रोग :-

पीला मोजैक वायरस (Yellow mosaic virus )

 यह रोग मूंग की फसल में लगने वाला प्रमुख रोग है, इस रोग से प्रभावित पौधे की पत्तियां पीली पड़ जाती है जो बाद में सूखकर गिर जाती है | पीला मोज़ेक वायरस से प्रभावित फसल में फलिया सही से नहीं बनती हैं ,जिसके कारण उत्पादन काफी गिर जाता है | इस रोग को फैलाने वाला प्रमुख कारण सफेद मक्खी को माना जाता है | इस रोग से बचाव के लिए मूंग के बीज के जमाव के 10 से 15 दिन बाद खेतों में yellow sticky trap 15 ट्रैप प्रति एकड़ के हिसाब से लगाना चाहिए | अगर फसल में सफेद मक्खी दिख रही है तो नीम तेल का 2 ml प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए |

मूंग का पाउडरी मिलडायू (Powdery mildew)

 मूंग में  यह रोग प्रमुख रूप से लगता है, इस रोग से प्रभावित पौधे की पत्तियां टहनियां व फूलों पर सफेद पाउडर के रूप में धब्बे दिखाई देते हैं | सफेद पाउडर पत्तियों की दोनों सतह पर सफेद रंग के छोटे-छोटे धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं | वह धीरे-धीरे पत्कीतियों की सारी सतह पर फैल जाते हैं | प्रभावित पत्तियां सख्त होकर मुड़ जाती हैं, ज्यादा संक्रमण होने पर पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं |

इस रोग के निदान के लिए जब फसल में एक दो पौधे पर लक्षण दिखाई दे तब उसे समय पर कवकनाशी का छिड़काव करना चाहिए |

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now
JoinButtons.txt Displaying JoinButtons.txt.

Leave a Comment