परिचय:
कोदो (Paspalum scrobiculatum) एक प्राचीन और पोषक तत्वों से भरपूर मोटा अनाज है, जिसे भारत के कई हिस्सों में परंपरागत रूप से उगाया जाता है। कोदो की खेती खासतौर पर सूखा प्रभावित और वर्षा आधारित क्षेत्रों में की जाती है। यह एक मोटे अनाज (मिलेट्स) की प्रजाति है, जो भारत में विशेषकर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, और तमिलनाडु में उगाई जाती है। यह न केवल किसानों के लिए लाभदायक फसल है, बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी बहुत उपयोगी है। बदलते कृषि परिदृश्य और मिलेट्स की बढ़ती मांग के चलते कोदो की खेती अब व्यवसायिक रूप से भी तेजी से उभर रही है।
कोदो का वानस्पतिक नाम:
Paspalum scrobiculatum
जलवायु (Climate):
कोदो गर्म एवं आर्द्र जलवायु में अच्छे से पनपती है। यह सूखा सहन करने वाली फसल है और 400 से 1000 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। 25°C से 35°C तापमान इसके लिए उपयुक्त होता है।
मिट्टी का प्रकार (Soil Type):
- कोदो के लिए बलुई, दोमट या मध्यम काली मिट्टी उपयुक्त रहती है।
- जमीन में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
- मिट्टी का pH मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
खेत की तैयारी:
खेत की 2–3 बार गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। अंतिम जुताई के समय खेत में गोबर की सड़ी खाद मिला दें। खरपतवार और अवशेषों को हटाकर समतल करें।
बीज की मात्रा और बुवाई (Seed Rate and Sowing):
- बीज दर: 5–7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
- बुवाई का समय: जुलाई से अगस्त (खरीफ मौसम)
- बुवाई की विधि: पंक्तियों में बीज बोना उचित होता है
- पंक्ति से पंक्ति की दूरी: 25–30 सेमी
- पौधे से पौधे की दूरी: 10 सेमी
- बीजोपचार: बीजों को बुवाई से पहले फफूंदनाशक (कार्बेन्डाजिम @2 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें |
Read more 👉 धान लगाने की S.R.I पद्धति
खाद एवं उर्वरक (Fertilizer & Manure):
- जैविक खाद: गोबर की सड़ी खाद 5–6 टन प्रति हेक्टेयर
- रासायनिक उर्वरक (प्रति हेक्टेयर):
- नाइट्रोजन (N): 40 किलो
- फास्फोरस (P): 20 किलो
- पोटाश (K): 20 किलो
- उर्वरक का आधा भाग बुवाई के समय और शेष 30–35 दिन बाद डालें।
खरपतवार नियंत्रण (Weed Management):
- पहली निराई: 15–20 दिन बाद
- दूसरी निराई: 35–40 दिन बाद
- रसायनिक नियंत्रण: Pendimethalin 30 EC का छिड़काव बुवाई के 1–2 दिन के भीतर करें।
रोग नियंत्रण (Disease Management):
1. ब्लास्ट रोग
- लक्षण: पत्तियों और बालियों पर भूरे धब्बे
- उपचार: ट्राईसाईक्लोजोल या कार्बेन्डाजिम @1 ग्राम प्रति लीटर पानी में छिड़काव
2. स्मट रोग (काला रोग)
- उपचार: रोगग्रस्त पौधों को खेत से निकालकर जला दें; बीजोपचार करें।
कीट नियंत्रण (Insect Management):
1. तना छेदक
- नियंत्रण: क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी @2 मिली प्रति लीटर पानी में छिड़काव करें।
2. माहू (Aphids)
- नियंत्रण: नीम आधारित कीटनाशक या इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करें।
सिंचाई (Irrigation):
- वर्षा आधारित खेती में अतिरिक्त सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।
- सूखे की स्थिति में केवल 1–2 हल्की सिंचाई फायदेमंद रहती है (अंकुरण और फूल आने के समय)।
फसल की कटाई एवं उपज (Harvesting & Yield):
- फसल अवधि: 100–120 दिन
- जब बालियाँ पीली पड़ जाएं और दाने सख्त हो जाएं, तब फसल काटी जाती है।
- कटाई के बाद फसल को अच्छी तरह सुखाकर मड़ाई करें।
- औसत उपज:
- असिंचित क्षेत्र में: 6–8 क्विंटल/हेक्टेयर
- सिंचित क्षेत्र में: 12–15 क्विंटल/हेक्टेयर
कोदो का महत्व:
- कोदो एक पोषक तत्वों से भरपूर अनाज है – इसमें फाइबर, प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर होते हैं।
- यह डायबिटीज, मोटापा और हृदय रोग से बचाव में सहायक माना जाता है।
- सरकार द्वारा “श्री अन्न मिशन” के तहत मोटे अनाजों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे कोदो की मांग और मूल्य दोनों बढ़ रहे हैं।
निष्कर्ष:
कोदो की खेती छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक सशक्त और लाभकारी विकल्प बन चुकी है। कम लागत, कम पानी की आवश्यकता, और पोषण से भरपूर उपज इसे एक बहुउद्देश्यीय फसल बनाती है। यदि वैज्ञानिक विधियों से इसकी खेती की जाए, तो यह न केवल पोषण बल्कि आय का भी मजबूत साधन बन सकती है।