रागी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी: Ragi Ki Kheti in Hindi

Ragi, Mandua (रागी, मंडुआ ) की खेती –

रागी या मंडुआ जोकि मोटे अनाज की श्रेणी का अनाज है | रागी की खेती मुख्य रूप से अफ्रीका और एशिया महादीप में की जाती है | इसको अन्य नामों जैसे मंडुआ, लाल बाजरा, अफ्रीकन रागी फिंगर मिलेट के नाम से भी जाना जाता है |

रागी पोषक तत्वों का भंडार है | इसके दानो मैं खनिज पदार्थो की मात्रा बाकि अनाज की फसलों से ज्यादा पाई जाती है | साधारण तौर पर इसका आटा पिसवा कर रोटी के रूप में खाया जाता है | इसके साथ रागी की डोसा, इडली,और पूरी बना कर खाया जाता है |

यह पोषक अनाज किसी भी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है | इसे पेट से सम्बंधित रोगों से बचाव के लिए अच्छा माना गया है | यह शरीर के मोटापे को भी कम करता है | मधुमेह रोग (Diabetes) में लाभकारी है |कम पानी वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है | 

रागी की फसल, रागी की खेती ,

रागी फसल की बहुत सी उन्नत किस्में हैं , जोकि अधिक पैदावार देती है 

  • G.P.U-45 – यह शीघ्र पकने वाली किस्म है, 100-110 दिनों में पाक कर तैयार हो जाती है | यह झुलसा रोग की प्रतिरोधी किस्म है |
  • Chilika (O.E.B-10) – इस किस्म के पौधे हल्के रंग और पत्तियां चौड़ी होती है। इसके प्रत्येक बालियों में 6 से 8 उंगलियाँ होती है और बालियों का अग्रभाग मुड़ा हुआ होता है | यह झुलसा रोग तथा तना छेदक कीट के प्रतिरोधी किस्म है |
  • Bhairvi(B.M 9-1) – इस किस्म के दाने हल्के भूरे रंग के होते है। यह किस्म 103 से 105 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह झुलसा रोग,भूरा धब्बा रोग,और तना छेदक कीट के प्रति रोधी किस्म है |
  • V.L-149 – इस किस्म के पौधों की गांठे रंगीन होती है,जबकि बालियां हल्की बैगनी रंग की होती है | इसके बालियों का अग्रभाग अंदर की ओर मुड़ा हुआ होता है। यह किस्म 98 से 102 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | 
  • रागी की VL 115– किस्म प्रति एकड़ करीब 30 क्विंटल तक उत्पादन देने में सक्षम है. वहीं AVV 45 किस्म 104 से 109 दिनों में तैयार हो जाती है और झुलसन रोग के लिए प्रतिरोधी मानी जाती है. इसकी उत्पादन क्षमता भी 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है | दूसरी तरफ VL-149 किस्म 98 से 102 दिनों में पकती है और औसतन 10 से 11 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है | यह किस्म भुरड़ रोग के लिए प्रतिरोधी है और अगेती खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है |

अन्य किस्मे –

P.R-202, H.R-374, J.N.R-1008, J.N.R-852 etc.

बुवाई का समय –

रागी की बुवाई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के दूसरे सप्ताह तक की जाती है |

बीज की मात्रा –

8-10 kg/hac. कतार से बोनी करने पर |

12-15 kg/hac. छिटकवा विधि से |

4-5 kg/hac. रोपा बोनी पर |

खाद एवं उर्वरक –

रागी की खेती से अधिक उपज लेने के लिए अच्छी साड़ी हुई गोबर की खाद पुरे खेत में छिड़क देना है | फिर इसके बाद जुताई करके बीज की बुवाई कर देना है |

उर्वरक के रूप में 60 kg नाइट्रोजन, 30 kg स्फुर , 20 kg पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालना चाहिए |

कतार से कतार की दूरी 20-25  सेमी.तथा पौध से पौध की दूरी 8-10 सेमी. रखनी चाहिए |

अंतरवर्ती फसल

रागी 8 कतार : अरहर 2 कतार या फिर रागी 4 कतार : अरहर 1 कतार 

फसल सुरक्षा –

1 .  झुलसा रोग

रागी की फसल पर फफूंदजनित झुलसन रोग का प्रकोप पौध अवस्था से लेकर बालियों में दाने भरने तक की अवस्था में हो सकता है।

इस रोग के प्रकोप से संक्रमित पौधे की पत्तियों में आंख के समान धब्बे बन जाते है | ये धब्बे बीच में धूसर व किनारों पर पीले-भूरे रंग के होते है। अनुकूल वातावरण में रोग का प्रकोप बढ़ने पर धब्बे आपस में मिल जाते है और पत्तियों झुलसकर सूख जाती है। इस रोग के प्रकोप से बालियों की ग्रीवा व अंगुलियों भी संक्रमित होता है।
रोग के अधिक संक्रमण पर ग्रीवा का कुछ भाग या पूर्णरूप से काला पड़ जाता है और बालियों का संक्रमित भाग से टूटकर लटक जाती है या फिर गिर जाती है। साथ ही अंगुलियां भी संक्रमित होकर सूख जाती है | जिसके कारण इसकी उपज और गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है |

2. रागी का भूरा धब्बा रोग-

यह एक फफूंदजनित रोग है ,इसका संक्रमण पौधे की सभी अवस्थाओं में हो सकता है। इस रोग के प्रकोप से प्रारम्भ में पत्तियों पर छोटे-छोटे अंडाकार हल्के भूरे धब्बे बनते है | बाद में इनका रंग गहरा भूरा हो जाता है। संक्रमण बढ़ने पर ये धब्बे आपस में मिलकर पत्तियों को समय से पहले सुखा देते है। रोग ग्रसित पौधों की बालियों एवं दानों का उचित विकास नहीं हो पाता ,जिससे दाने सिकुड जाते है और उपज में कमी आती है।

रोग से बचने के लिए कार्बेन्डाजिम ,मेन्कोजेब फफूंद नाशक दवा का 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करना चाहिए |

कीट – गुलाबी ताना छेदक 

इस कीट के अंडे गोलाकार सफ़ेद या मलाईदार सफ़ेद होती है | ये अंडे पत्ती के शीर्ष और पौधे के तने के बीच गुच्छों में होती हैं। इसके लार्वा गुलाबी- भूरे रंग के होते है जिनके सिर लाल भूरे रंग के के होते हैं।  तने के अंदर प्यूपा भूरा रंग के होते हैं। इसके वयस्क घास के तिनके के रंग के समान होते हैं , जिसके अग्रभाग पर 3 काले धब्बे होते हैं और इसके पंखों में एक हल्की भूरी सफेद मध्य धारी होती है। नुकसान के तरीका – इसके गुलाबी लार्वा तने में घुसकर अन्दर ही अन्दर खाकर नुकसान पहुंचाते है , जिसके कारण तना डेड हार्ट बन जाता है |


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उपज –

रागी की उपज लगभग 25 क्विंटल दाना एवं 100 क्विंटल चारा  प्रति हेक्टेयर मिलता है |

FAQ:-

1. रागी की खेती के लिए कौन-सी मिट्टी सबसे उपयुक्त है ?
रागी की खेती के लिए लाल दोमट, बलुई दोमट या हल्की काली मिट्टी उपयुक्त होती है। जल निकासी अच्छी होनी चाहिए ताकि फसल को जलभराव से नुकसान न हो।

2. रागी की बुवाई का सही समय क्या है ?
रागी की बुवाई खरीफ मौसम में जून-जुलाई और रबी मौसम में अक्टूबर-नवंबर में की जाती है। समय क्षेत्रीय जलवायु पर निर्भर करता है।

3. रागी की प्रमुख किस्में कौन-सी हैं?
भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख किस्में हैं – GPU-28, GPU-48, PR-202, VL-146 और KMR-301।

4. रागी की फसल में कौन-से प्रमुख कीट और रोग लगते हैं ?
रागी में तना मक्खी, थ्रिप्स और एफिड कीट लगते हैं, जबकि ब्लास्ट रोग और स्मट रोग प्रमुख हैं। इनका उपचार कीटनाशकों और रोगनाशी दवाओं से किया जाता है।

5. रागी की फसल में सिंचाई कितनी बार करनी चाहिए ?
खरीफ मौसम में वर्षा आधारित सिंचाई पर्याप्त होती है, जबकि रबी मौसम में 2-3 बार सिंचाई आवश्यक होती है, विशेषकर फूल आने और दाना भरने के समय।

6. रागी की फसल की कटाई कब की जाती है ?
जब पौधों की बालियाँ सुनहरी हो जाएँ और दाने कठोर हो जाएँ, तब कटाई करनी चाहिए। आमतौर पर बुवाई के 100-120 दिन बाद फसल तैयार हो जाती है।

7. रागी का उत्पादन और उपज कितनी होती है?
अच्छी देखभाल और उन्नत किस्मों के प्रयोग से रागी की औसत उपज 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल सकती है।

8. रागी के पोषण और स्वास्थ्य लाभ क्या हैं?
रागी कैल्शियम, आयरन और फाइबर से भरपूर होती है। यह मधुमेह रोगियों, बच्चों और हड्डियों की मजबूती के लिए लाभदायक है।

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